Geography Class 12th Chapter 2 Notes in Hindi
कक्षा 12 वीं मानव भूगोल के मूल सिद्धांत | |
पाठ -02 | पाठ 02. विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि |
पाठ 02. विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि
(World Population: Distribution, Density and Growth)
किसी देश के निवासी ही उसके वास्तविक धन होते हैं।
यही लोग वास्तविक संसाधन हैं जो देश के अन्य संसाधनों का उपयोग करते हैं। और उसकी नीतियाँ निर्धारित करते हैं।
अंततः एक देश की पहचान उसके लोगों से ही होती है।
21वीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या 600 करोड़ से अधिक दर्ज की गई।
विश्व की जनसंख्या असमान रूप से वितरित है।
एशिया की जनसंख्या के संबंध में जॉर्ज बी. क्रेसी की टिप्पणी है कि ” एशिया में बहुत अधिक स्थानों पर कम लोग और कम स्थानों पर बहुत अधिक लोग रहते हैं।”
विश्व में जनसंख्या वितरण के प्रारूप
जनसंख्या वितरण’ शब्द का अर्थ भूपृष्ठ पर लोग किस प्रकार वितरित हैं।
विश्व की जनसंख्या का 90 प्रतिशत, इसके 10 प्रतिशत स्थलभाग में निवास करता है।
विश्व के दस सर्वाधिक आबाद देशों में विश्व की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है इन दस देशों में से छह एशिया में अवस्थित है।
जनसंख्या का घनत्व
लोगों की संख्या और भूमि के आकार के बीच का अनुपात जनसंख्या का घनत्व कहलाता है। प्रतिवर्ग किलोमीटर रहने वाले वक्तियों की औसत संख्या।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
पृथ्वी पर जनसंख्या के असमान वितरण, घनत्व एवं वृद्धि को अनेक कारकों ने प्रभावित किया है । जनसंख्या के घनत्व और वितरण को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं ।
(I) भौगोलिक कारक
1. जल की उपलब्धता – लोग उन क्षेत्रों में बसने को प्राथमिकता देते हैं। जहाँ जल आसानी से उपलब्ध होता है। जल का उपयोग पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, उद्योगों तथा नौसंचालन में किया जाता है। यही कारण है कि नदी घाटियाँ विश्व के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्र हैं ।
2. भू-आकृति – लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसने को वरीयता देते हैं इसका कारण यह है कि ऐसे क्षेत्र फसलों के उत्पादन, सड़क निर्माण और उद्योगों के लिए अनुकल होते हैं। पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्र परिवहन-तंत्र के विकास में अवरोधक हैं, इसलिए प्रारंभ में कृषिगत और औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल नहीं होते। अत: इन क्षेत्रों में कम जनसंख्या पाई जाती है।
उदाहरण के लिए गंगा का मैदान विश्व के सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकि हिमालय के पर्वतीये भाग विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं।
3. जलवायु – अधिक वर्षा अथवा विषम और सूक्ष्म जलवायु के क्षत्रों में कम जनसंख्या पाई जाती हैं। भूमध्य सागरीय प्रदेश सुखद जलवायु के कारण इतिहास के आरंभिक कालों से बसे हुए हैं।
4. मृदाएँ- उपजाऊ दोमट मिट्टी वाले प्रदेशों में अधिक लोग रहते हैं क्याँकि ये मृदाएँ गहन कृषि का आधार बन सकती हैं।
(ii) आर्थिक कारक-
1. खनिज – खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ रोजगार उत्पन करते हैं। अत: कुशल एवं अर्धकुशल कर्मी इन क्षेत्रों में पहुँचते हैं और जनसंख्या को सघन बना देते हैं। अफ्रीका की कटंगा, जांबिया तांबा पेटी इसका एक अच्छा उदाहरण है।
2. नगरीकरण – अच्छी नागरिक सुविधाएँ तथा नगरीय जीवन के आकर्षण लोगों को नगरों की ओर खींचते हैं। विश्व के विराट नगर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में प्रवासियों को निरंतर आकर्षित करते हैं।
3. औद्योगीकरण – औद्योगिक पेटियाँ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती हैं और बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करती हैं। जापान का कोबे-ओसाका प्रदेश अनेक उद्योगों को उपस्थिति के कारण सघन बसा हुआ है।
(iii) सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक – कुछ स्थान धार्मिक अथवा सांस्कृतिक महत्व के कारण अधिक लोगों को आकर्षित करते हैं। ठीक इसी प्रकार लोग उन क्षेत्रों को छोड़ कर चले जाते हैं जहाँ सामाजिक और राजनीतिक अशांति होती है।
कई बार सरकारें भी लोगों को विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसने को प्रोत्साहन देती हैं ।
जनसंख्या परिवर्तन के घटक
जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक हैं – जन्म, मृत्यु और प्रवास।
जन्म दर ( Birth Rate ) – प्रति हजार पर एक वर्ष में जन्में जीवित बच्चों की संख्या को जन्म दर कहा जाता है।
मृत्यु दर ( Death Rate) – प्रति हजार पर एक वर्ष में मरने वाले बच्चों की संख्या को मृत्यु दर कहा जाता है।
प्रवास (Migration) – एक स्थान से दूसरे स्थान पर जनसंख्या का स्थानांतरण।
जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) – जन्म दर और मृत्यु दर के मध्य अंतर को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।
जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि – यह तब होती है जब दो समय अंतरालों के बीच जन्म दर, मृत्यु दर से अधिक हो या जब अन्य देशों से लोग स्थायी रूप से उस देश में प्रवास कर जाएँ।
जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि – यदि दो समय अंतराल के बीच जनसंख्या कम हो जाए तो उसे जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि कहते हैं। यह तब होती है जब जन्म दर, मृत्यु दर से कम हो जाए अथवा लोग अन्य देशों में प्रवास कर जाएँ।
प्रवास (Migration) – एक स्थान से दूसरे स्थान पर जनसंख्या का स्थानांतरण।
उद्गम स्थान ( Place of Origin) – जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो वह स्थान जहाँ से लोग गमन करते हैं उद्गम स्थान कहलाता है।
गंतव्य स्थान ( Place of Destination) – जिस स्थान में आगमन करते हैं वह गंतव्य स्थान कहलाता है।
आप्रवास ( Immigration ) – प्रवासी जो किसी नया स्थान पर जाते हैं। आप्रवासी कहलाते हैं।
(लोगों का आकर बस जाना)
उत्प्रवास ( Emigration) – प्रवासी जो एक स्थान से बाहर चले जाते हैं उत्प्रवासी कहलाते हैं। (लोगों का वहाँ से छोड़ कर चला जाना)
प्रतिकर्ष कारक (Push Factors ) – बेरोजगारी, रहन-सहन की निम्न दशाएँ, राजनीतिक उपद्रव, प्रतिकूल जलवायु, प्राकृतिक विपदाएँ, महामारियाँ तथा सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन जैसे कारण उद्गम स्थान को कम आकर्षित बनाते हैं।
अपकर्ष कारक ( Pull Factors) – काम के बेहतर अवसर और रहन-सहन की अच्छी दशाएँ, शांति व स्थायित्व, जीवन व संपत्ति की सुरक्षा तथा अनुकूल जलवायु जैसे कारण गंतव्य स्थान को उद्गम स्थान की अपेक्षा अधिक आकर्षक बनाते हैं।
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि : किसी क्षेत्र विशेष में दो समय अंतरालों में जन्म और मृत्यु के अंतर से बढ़ने वाली जनसंख्या को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।
प्राकृतिक वृद्धि = जन्म – मृत्यु
जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि : यह वृद्धि तब होती है जब वास्तविक वृद्धि = जन्म – मृत्यु + आप्रवास – उत्प्रवास
जनसंख्या परिवर्तन के स्थानिक प्रारूप विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या वृद्धि की तुलना की जा सकती है। विकसित
देशों में विकासशील देशों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि कम है।
जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास में ऋणात्मक सह-संबंध पाया जाता है।
जनसंख्या परिवर्तन का प्रभाव
जनसंख्या वृद्धि समस्याओं को उत्पन्न करती है। इनमें से संसाधनों का ह्रास सर्वाधिक गंभीर है।
जनांकिकीय संक्रमण
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है।
यह सिद्धांत हमें बताता है कि जैसे ही समाज ग्रामीण, खेतिहर और अशिक्षित अवस्था से उन्नति करके नगरीय औद्योगिक और साक्षर बनता है। तो किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म और उच्च मृत्यु से निम्न जन्म व निम्न
मृत्यु में परिवर्तित होती है। ये परिवर्तन अवस्थाओं में होते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से जनांकिकीय चक्र के रूप में जाना जाता है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत के तीन अवस्थाओं वाले मॉडल की व्याख्या करता है :
प्रथम अवस्था में उच्च प्रजननशीलता व उच्च मर्त्यता होती है क्योंकि लोग महामारियों और भोजन की अनिश्चित आपूर्ति से होने वाली मृत्युओं की क्षतिपूर्ति अधिक पुनरुत्पादन से करते हैं।
जनसंख्या वृद्धि धीमी होती है और अधिकांश लोग खेती में कार्यरत होते हैं। जहाँ बड़े परिवारों को परिसंपत्ति माना जाता है।
जीवन – प्रत्याशा निम्न होती हैं, अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं और उनके प्रौद्योगिकी स्तर निम्न होते हैं।
200 वर्ष पूर्व विश्व के सभी देश इसी अवस्था में थे।
द्वितीय अवस्था के प्रारंभ में प्रजननशीलता उँची बनी रहती है किंतु यह समय के साथ घटती जाती है।
यह अवस्था घटी हुई मृत्यु दर के साथ आती है।
स्वास्थ्य संबंधी दशाओं व स्वच्छता में सुधार के साथ मर्त्यता में कमी आती है। इस अंतर के कारण, जनसंख्या में होने वाला शुद्ध योग उच्च होता है।
अंतिम अवस्था में प्रजननशीलता और मर्त्यता दोनों अधिक घट जाती है। जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है तथा उसके पास तकनीकी ज्ञान
होता है। ऐसी जनसंख्या विचारपूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है।
जनसंख्या नियंत्रण के उपाय
परिवार नियोजन।
शिक्षा का प्रसार।
गर्भ निरोधक की सुगम उपलब्धता।
विवाह की आयु में वृद्धि करना।